क्यों सरकार किसानों के खिलाफ और कॉरपोरेट्स के पक्ष में है?
1. बजट में कृषि को कम जगह
सरकार अपना अधिकांश बजट उद्योग और सरकारी कर्मचारियों पर खर्च करती है।
कृषि का हिस्सा बजट का सिर्फ 3–4% रहता है।
इससे किसानों को जरूरी सुविधाएँ और निवेश नहीं मिल पाते हैं।
2. MSP की गारंटी नहीं
किसान चाहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कानूनबद्ध हो।
लेकिन बजट में MSP को कानूनी दर्जा नहीं मिला।
बिना MSP की गारंटी किसान मजबूरी में कम दाम पर बेचते हैं।
3. कॉरपोरेट्स के लिए ऋणमाफी, किसानों के लिए नहीं
पिछले दो साल में बैंकों ने बड़े कॉरपोरेट्स के मल्टीक्रोर कर्ज माफ किए।
वहीं किसानों के ऋणमाफी के बड़े पैकेज नहीं आए।
इससे लगता है कि उद्योगपतियों को प्राथमिकता मिल रही है।
4. किसान मंडियों के खिलाफ़ है सरकार
सरकार ने कृषि बाज़ारों का पूरी तरह निजीकरण करने की कोशिश की है। जिसका फ़ायदा बड़ी साथियों को जादा है
बड़ी कंपनियाँ खरीद, भंडारण और एक्सपोर्ट आसानी से कर सकेंगी।
जिस्से छोटे किसान मंडियों और अच्छे दाम से वंचित रह जाएंगे।
5. कर्ज़ लेने में बाधाएँ
किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा थोड़ी बढ़ी, लेकिन शर्तें कड़ी हैं।
60% किसान अभी भी महंगे सूदखोरों से 30–60% ब्याज पर कर्ज़ लेते हैं।
कंपनियों को कम दरों पर आसान बैंक लोन मिलते हैं।
6. अवसंरचना में असंतुलन
सरकार ने मंडियों, गोदामों और cold storage पर योजना बनाई है।
लेकिन छोटे किसानों को इसके लिए पात्र होना मुश्किल है।
बड़ी कंपनियाँ इस्का लाभ ले लेती हैं।
सरकार को किसानों के लिए भी उद्योग जैसी योजनाएँ बनानी चाहिए।
MSP को कानूनी दर्जा देकर किसानों की कमाई मजबूत करें।
कर्ज़माफी, सस्ते कर्ज़ और बेहतर बुनियादी सुविधाएँ तुरंत सुनिश्चित करें।
तभी किसान आत्मनिर्भर बनेंगे और हमारी कृषि समृद्ध होगी।
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