मीडिया


हमारा देश अब तक के सबसे नाजुक समय से गुजर रहा है
आजादी से अब तक देश ने जो कुछ भी बनाया है वो सब कुछ सरेआम नीलाम किया जा रहा है और टीवी पर किसी भी news चैनल पर इसको लेकर कोई भी सवाल नजर नहीं आ रहा
‌यह सरकार हर साल 2 crore नौकरिया देने के वायदे के साथ आयी थी परंतु सरकारी कंपनियों क  khatmey पर उतारू हो गई है,
‌jiska मतलब है न सरकारी कंपनियां बचेगी न किसी को नौकरी देनी पड़ेगी.!
‌मैं पर्सनल तौर पर इस सबके लिए लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को jimevaar मानता हूँ. वो न जाने क्यु सरकार के हर गलत फैसले को टीवी पर masterstroke कहकर सारे देश की आंख में धूल झोंक रहे हैं!

Media sawal सरकार और उसकी नीतियों के बारे में छोड़कर विपक्ष से karta हुआ nazar आ रहा है, यहा तक कि एक , gst, kisan बीमा yojna जैसी फैल नीतियों पर एक भी सवाल ऐसा sarkar से नहीं  जिससे ईन योजनाओं के fail होने की वजह और जवाबदेही तेह हो सके यहा तक कि सवाल पूछने पर मीडिया लोगों को और विपक्ष को anti-nationalist का tag लगा देती है मतलब साफ़ है कि लोकतंत्र का चोथा स्तम्भ बिक चुका है Ager ऐसा नहीं होता तो टीवी पर सिर्फ हिन्दू मुस्लिम debates की जगह बड rahe अपराधों पर unemployment पर economy पर नयी शिक्षा नीति की कमियों पर बिक रही सरकारी धरोहर पर बढ़ती हुई गरीबी जैसी असली समस्याओं पर चर्चा होती और sarkar पर दबाव बनता ईन सब
फील्ड्स में काम करने का जिससे आम लोगों को बहुत फायदा हो सकता था
..
‌लेकिन मीडिया पूरी तरह सत्ता में बेठे लोगों के हाथ में खेल रहा है जो कि देश को होने वाले अकाल्पनिक नुकसान की तरफ इशारा karta है, और यह एक डरा देने वाला सच है कि ख़बरें जब bikkar छपने लगे तो आम लोगों के जानने से पहले ही सब कुछ खत्म हो जाता है दुनिया ऐसा कुछ प्राथम विश्वयुद्ध के बाद इटली और जर्मनी में देख चुकी है! अगर भारत में आजादी की लड़ाई के दोरान भी इसी प्रकार की मीडिया होती जो सत्ता के हाथ में खेल रही है तो फिर शायद स्वतंत्रता सैनानीयों की कोई भी बात कभी भी देश वासियों तक ना पहुंच पाती मतलब शायद
उस समय बिकाऊ मीडिया होता तो azadi आज भी एक ख्वाब ही hota
। इस लिए democracy के चौथे स्तंभ मीडिया को असली मुद्दो से देश को रूबरू करवाना चाहिए और अपना धर्म पत्रकारिता को शर्मिंदा होने से बचाना चाहिए.


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