GST: लूट का टैक्स, अब राहत का नाटक
2017 में मोदी सरकार ने पूरे देश में एक नया टैक्स सिस्टम लागू किया — जिसका नाम था GST यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स। इसे “एक देश, एक टैक्स” बताया गया, लेकिन आम जनता ने इसे “गब्बर सिंह टैक्स” कहना शुरू कर दिया। वजह साफ थी — रोजमर्रा की हर चीज़ पर इतना ज़्यादा टैक्स लग गया कि आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ा। साबुन, शैम्पू, नमकीन, टीवी, सीमेंट, बीमा — सब कुछ महंगा हो गया। टैक्स स्लैब थे 5%, 12%, 18% और 28% तक। सीमेंट और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी चीज़ों पर 28% तक का टैक्स लगाया गया। व्यापारी कागज़ी झंझट में उलझे, ग्राहक महंगाई से जूझते रहे, और सरकार ने हर महीने लाखों करोड़ रुपये की वसूली की।
हैरानी की बात ये है कि जब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने GST का विरोध किया था। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद वही GST पूरे देश पर थोप दिया गया। आठ साल तक जनता से टैक्स के नाम पर पैसा वसूला गया, और सरकार ने ₹55 लाख करोड़ से ज़्यादा GST के रूप में जमा कर लिया। इस दौरान छोटे व्यापारियों को रिफंड नहीं मिला, मध्यम वर्ग महंगाई से परेशान रहा, और सरकार ने इसे “सुधार” कहकर प्रचारित किया।
फिर 2025 में, चुनाव के ठीक पहले, सरकार ने अचानक GST के रेट घटा दिए। अब पनीर, नमकीन, दवाइयां, साबुन, ब्रश, बीमा जैसी 375 से ज़्यादा चीज़ों पर सिर्फ 5% या शून्य टैक्स लग रहा है। सीमेंट और छोटी गाड़ियों पर भी अब 18% टैक्स है, जो पहले 28% था। तंबाकू और पान मसाला जैसी चीज़ों पर 40% तक का टैक्स बढ़ा दिया गया है।
GST में इस कटौती के बाद गोदी मीडिया ने मोदी-मोदी का जाप शुरू कर दिया। टीवी चैनलों पर हेडलाइन आई: “मोदी जी ने दिया नवरात्रि का तोहफा”, “PM ने किया ऐतिहासिक काम”। लेकिन कोई ये नहीं पूछ रहा कि पहले क्यों महंगाई बढ़ाई गई? क्यों बीमा और दवाइयों तक पर 18% टैक्स लगाया गया? क्यों आठ साल तक जनता से लूट चली?
सच्चाई ये है कि पहले GST के नाम पर जनता से पैसा लूटा गया, और अब उसी लूट को “राहत” कहकर प्रचारित किया जा रहा है। ये राहत नहीं, छल है। सरकार ने पहले महंगाई बढ़ाई, अब उसी को कम करके अपना प्रचार कर रही है। गब्बर सिंह टैक्स का असली चेहरा आज भी ज़िंदा है — बस उस पर एक नया मास्क चढ़ा दिया गया है।
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