बंदी छोड़ दिवस सिख इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय है, जो गुरु हरगोबिंद साहिब जी की न्यायप्रियता, वीरता और करुणा को दर्शाता है। यह दिवस 16 अक्टूबर 1619 को घटित उस घटना की स्मृति में मनाया जाता है जब गुरु जी ने ग्वालियर किले से न केवल स्वयं को बल्कि 52 हिंदू राजाओं को भी मुक्त कराया था।
🛡️ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 19 जून 1595 को गुरु अर्जन देव जी और माता गंगा जी के घर हुआ था।
- उन्होंने मीरी और पीरी की परंपरा शुरू की—धार्मिक और सांसारिक शक्ति का संतुलन।
- गुरु अर्जन देव जी की शहादत के बाद, गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को आत्मरक्षा और युद्धकला में प्रशिक्षित करना शुरू किया।
🏰 ग्वालियर किले में कैद
- मुगल सम्राट जहांगीर ने गुरु जी को ग्वालियर किले में कैद कर लिया, जहाँ पहले से 52 हिंदू राजा बंदी थे।
- गुरु जी ने अपनी रिहाई की शर्त रखी: जब तक सभी राजा मुक्त नहीं होंगे, वे भी बाहर नहीं जाएंगे।
- जहांगीर ने यह शर्त स्वीकार की, लेकिन एक चाल चली—कहा कि जो राजा गुरु जी के वस्त्र को पकड़कर बाहर निकलें, वे ही मुक्त होंगे।
🧵 चोला और मुक्ति
- गुरु जी ने 52 कलियों वाला विशेष चोला बनवाया, जिससे सभी राजा पकड़कर बाहर निकल सके।
- इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने 52 राजाओं को मुगलों की कैद से छुड़ाया, और बंदी छोड़ कहलाए।
🎆 दीपावली और बंदी छोड़ दिवस
- उसी दिन दीपावली भी थी। हरिदास नामक भक्त ने गुरु जी के स्वागत में दीपमाला सजाई।
- तभी से सिख समुदाय इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है, जो दीपावली के साथ ही आता है .
- ग्वालियर किले में आज भी दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा स्थित है, जो इस घटना की स्मृति को जीवित रखता है।
- गुरु जी ने बाद में कीरतपुर साहिब की स्थापना की और सिखों को संगठित किया।
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